यदि आपका मन मानवीय संवेदनाओं से भरा हुआ हो और आप अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से विधि के विधान को भी सकारात्मक दिशा में बदलने की सोच रखते हैं तो दिव्यांगता भी जीवन को नया ध्येय प्रदान कर सकती है। यह बात साबित होती है डॉ. मीता मुखर्जी की किताब से अपनी जन्मजात दिव्यांग बेटी का जीवन आसान बनाने के लिए उन्होंने अपनी शिक्षा और कर्म क्षेत्र ही दिव्यांगता को बना लिया। लेखिका ने इस ध्येय के लिए स्पेशल बीएड और पीएचडी की बेटी के नाम पर पियाली फाउंडेशन की स्थापना की और उसका संचालन करते हुए 60 दिव्यांग बच्चों को प्रशिक्षित कर रही हैं। 35 वर्ष की आयु में कोरोना से बिटिया का देहावसान होने के बाद डॉ मुखर्जी ने अपने सम्पूर्ण अनुभवों पर आधारित पुस्तक लिखी है। मां और बेटी के सुख-दुःख में साथ और अर्जित ज्ञान को दिव्यांगता के क्षेत्र में कार्यरत लोगों के साथ साझा करने का यह प्रयास प्रणम्य है। इसकी प्रामाणिकता स्वयं सिद्ध है। मेरा मानना है कि यह पुस्तक दिव्यांगजनों के लिए मां की ममता की छांव की तरह उपयोगी होगी।
प्रकाशन अपने उद्देश्यों में सफल हो, इसके लिए हार्दिक शुभकामनाएं।
श्री भूपेश बघेल
मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़
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