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दरवाज़ा खोलो बाबा (Darwaza Kholo Baba / Dr. Monika Sharma)

(4 customer reviews)

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‘दरवाज़ा खोलो बाबा’ संग्रह की रचनाएँ बदलते परिवेश के अवलोकन और नव-स्पंदन से परिपूर्ण पुरुष हृदय की अनुभूतियों का लेखा-जोखा सा है। जितना मैं समझ पाई, जिस तरह समझ पाई, कहने की कोशिश की है। मात्र विमर्श नहीं बल्कि यह वक़्त की दरकार है कि साझी कोशिशों और स्त्री-पुरुष के भेद से परे मानवीय सरोकारों की उजास को सामाजिक-पारिवारिक परिवेश में सहज स्वीकार्यता मिले।
उम्मीद है पुरुष मन में पलती परवाह और प्रेम के मनोभाव की ये कविताएँ आपको ज़रूर पसंद आएँगी।
‘Darawaza Kholo Baba’ sangrah ki rachanaaen badalate parivesh ke avalokan aur nav-spandan se paripoorN puruS hRiday ki anubhootiyon ka lekhaa-jokha sa hai. Jitana main samajh paaee, jis tarah samajh paaee, kahane ki koshish ki hai. Maatr vimarsh naheen balki yah vaqt ki darakaar hai ki saajhi koshishon aur stree-puruS ke bhed se pare maanaveey sarokaaron ki ujaas ko saamaajik-paarivaarik parivesh men sahaj sveekaaryata mile.
Ummeed hai puruS man men palati paravaah aur prem ke manobhaav ki ye kavitaaen aapako zaroor pasand aaYengee.

Author

डॉ. मोनिका शर्मा

Format

Paperback

ISBN

978-93-92617-32-4

Language

Hindi

Pages

104

Publisher

Shwetwarna Prakashan

4 reviews for दरवाज़ा खोलो बाबा (Darwaza Kholo Baba / Dr. Monika Sharma)

  1. सारिका चौधरी

    दरवाजा खोलो बाबा… टाइटल देखकर ही मन कितना भावुक हो उठता हैं ना कि एक बेटी बेवजह अपने पिता के घर जाना चाह रही हैं माने बेटियां कतई पराई नहीं होती हैं…. ना जाने कितनी ही कविताओं में अपना मन अपने ही बाबा को अपने आसपास पाता हैं…. पितृसत्तात्मक परिवेश कविता बहुत ही प्यारी हैं पूरी किताब में कहीं भी स्त्री पुरुष की बराबरी ना की गई हैं यहीं बात मेरे मन को बहुत भाई हैं और पुरुषों की बराबरी करने की जरूरत भी कहाँ हैं दोनों अपनी अपनी जगह सही हैं…. जो नहीं जीते बेटी, पत्नी व माँ के लाड चाव को वो पुरुष जीते ही कहाँ हैं अपने पुरुषत्व को… कितनी प्यारी और बड़ी बात हैं ना… कुल मिलाके एक सीटिंग में किताब पूरी की जा सकती हैं और बहुत ही छोटी छोटी और प्यारी कविताएँ लिखी गई हैं मुझे किताब इतनी अच्छी लगी कि मैंने इस एक किताब की तीन प्रतियां मंगवाई हैं और अपने पिता को भी गिफ्ट की हैं…. कुल मिलाके अपनी दीदी की किताब हमें तो बहुत ही अच्छी लगी हैं और हम आपको भी कहेंगें कि एक बार जरूर पढ़ी जाएं!! 🥰🥰😄😄

  2. Lili Karmakar

    एकदम ही एक नए विषय पर अच्छी पुस्तक।

  3. अपर्णा देवल

    इन कविताओं को आप एक साथ नहीं पढ़ सकते। हर एक कविता कई कई दृश्य खींच देती है और आप अपने अनुभवों के पास लौटते हैं। विषय ऐसा है कि सब जुड़ पाते हैं। सबके अनुभव से जुड़ने और जोड़ने वाली और जीवन में पिता की सार्थक भूमिका को रेखांकित करने वाली किताब। इसे आप पढ़ना भी चाहेंगे और सहेजना भी ताकी बार-बार लौट कर पढ़ा जा सके। शुक्रिया और शुभकामनाएं।

  4. डॉ ब्रजेश गौतम

    जब भाव-प्रवाह तरंग लेगा
    गति शब्द की संयुक्त होगी…
    अर्थ तुमने दे दिए हैं
    उस वीथि पथ को जान लूँगा…

    दरवाजे पर दस्तक देती हुई सन्तति पुत्री हो तो कहने और सुनने को बहुत कम रह जाता है…

    डॉ मोनिका ने पिता और पितृ ऋण को पुत्री की भावना से भरी हुई अभिनव भावभीनी महक से अमृत का छिड़काव कर दिया है…

    कुछ और घाव हैं,कम दिखते हैं
    और जनों को …
    पहन ओढ़नी मेला जग का
    देख चले हैं
    संग मनों के…

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