आज विश्व कोरोना महामारी के संकट से जूझ रहा है। कारगर वैक्सीन और दवाओं की खोज निरंतर जारी है। इसके साथ ही लॉकडाउन को एक सुरक्षा कवच के रूप में उपयोग गया है, जिससे कोरोना कुछ नियंत्रित तो हुआ है साथ ही विभिन्न अमानवीय परिस्थितियाँ भी उत्पन्न हुई हैं, पर्यावरण में सकारात्मक बदलाव भी देखे गये हैं। ऐसे में लॉकडाउन एवं उससे उपजी परिस्थितियों ने नवगीत लेखन को अनेक नए और अप्रस्तुत विषय देने के साथ ही अर्थवान बिम्ब भी प्रदान किये। नई शब्दावलियाँ उपलब्ध कराईं। फलतः ‘लॉकडाउन’, ‘वर्क फ्रॉम होम’, ‘सोशल डिस्टेन्सिंग’, ‘मास्क’, ‘सैनेटाइजर’, ‘इम्यूनिटी बूस्टर’, ‘क्वारंटीन’, ‘वैक्सीन’ आदि शब्द आम बोल-चाल की भाषा का हिस्सा बने और नवगीतों में इनकी भाव-चित्रात्मक प्रस्तुति हुई। इस बदलते गीत-स्वरूप की प्रस्तुति ही इस संकलन की आधारशिला बनी, लॉकडाउन के सकारात्मक-नकारात्मक पक्षों की समीक्षा करते गीतों का संकलन-‘हम असहमत हैं समय से।’
Aaj vishv korona mahaamaari ke sankaT se joojh raha hai. Kaaragar vaikseen aur davaaon ki khoj nirantar jaari hai. Isake saath hi lŏkaDaaun ko ek surakSa kavach ke roop men upayog gaya hai, jisase korona kuchh niyantrit to hua hai saath hi vibhinn amaanaveey paristhitiyaan bhi utpann hui hain, paryaavaraN men sakaaraatmak badalaav bhi dekhe gaye hain. Aise men lŏkaDaaun evan usase upaji paristhitiyon ne navageet lekhan ko anek nae aur aprastut viSay dene ke saath hi arthavaan bimb bhi pradaan kiye. Nai shabdaavaliyaan upalabdh karaaeen. FalatH ‘lŏkaDaaun’, ‘vark frŏm hom‘, ‘soshal DisTensing’, ‘maask’, ‘saineTaaijar’, ‘imyooniTi boosTar’, ‘kvaaranTeen’, ‘vaikseen’ aadi shabd aam bol-chaal ki bhaaSa ka hissa bane aur navageeton men inaki bhaav-chitraatmak prastuti huee. Is badalate geet-svaroop ki prastuti hi is sankalan ki aadhaarashila banee, lŏkaDaaun ke sakaaraatmak-nakaaraatmak pakSon ki sameekSa karate geeton ka sankalan-‘ham asahamat hain samay se.’
रवि खण्डेलवाल –
#हम_असहमत_हैं_समय_से –
नवगीत@लॉकडाउन
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श्वेतवर्णा प्रकाशन Shwetwarna Prakashan द्वारा प्रकाशित एवं शुभम् श्रीवास्तव ओम शुभम् श्रीवास्तव ओम द्वारा संपादित नवगीत संकलन
हम असहमत हैं समय से ऐसे वक़्त आया है जब कोविड की दूसरी लहर से भारत का अधिकांश हिस्सा संक्रमित होकर मौत की सुनामी झेल रहा है l
प्रस्तुत संकलन की योजना लगभग एक वर्ष पूर्व कोविड की पहली लहर को झेलते हुए लॉकडाउन के मध्य बनी थी और तब इस संकलन का उप शीर्षक था नवगीत@लॉकडाउन l
इस एक वर्ष में इतना कुछ घट गया कि जिसकी चर्चा अब अनुपयुक्त होते हुए भी उपयुक्त प्रतीत हो रही है l हममें से जाने कितने रचना कार, संपादक, प्रकाशक इस महामारी के शिकार हुए किंतु खुशी की बात यह रही कि अधिकांश इस महामारी को हराकर पुन: जिंदगी की धारा से जुड़ गये l श्वेतवर्णा प्रकाशन के संचालक प्रिय राहुल शिवाय Rahul Shivay स्वयं विवाह उपरांत कोरोना से संक्रमित हो गये थे, लेकिन रचनाकारों ने कभी किन्हीं भी परिस्थितियों में टूटना नहीं सीखा है l इसी जिजीविषा का परिणाम है यह नवगीत संकलन *हम असहमत हैं समय से* जो आज साकार रूप में हमारे हाथों में है l
#समय_के_साथ_कदम_से_कदम_मिलाकर_चलने_वाले_56_नवगीतकारों_के_119_नवगीतों_का_गुलदस्ता_है *हम असहमत हैं समय से*
#शारदा_सुमन द्वारा डिजाइन किया हुआ संकलन का कवर पृष्ठ इतना प्रभावी है कि जिसके बारे में एक उक्ति विशेष “लिफाफा देखकर ख़त का मजमून भांप लेते हैं” से समझा जा सकता है l
प्रिय शुभम श्रीवास्तव ओम जो इस संकलन के संपादक हैं, एक युवा और ऊर्जा से भरे हुए ऐसे रचनाकार हैं जो चुप रहकर बिना किसी प्रचार तंत्र के कार्य करते रहने में विश्वास करते हैं ।
खुशी इस बात की भी है कि यह संकलन उस रचनाकार के हाथों संपादित होकर आया है जिसको अभी हाल ही में काव्य विधा के लिए
#हिंदुस्तानी_एकेडमी_युवा_सम्मान से सम्मानित किया गया है l
शुभम् ने इस संकलन के संपादकीय में कविता क्या है को अपनी पहली पंक्ति #कविता_मानव_जीवन_के_विशिष्ट_दृश्य_क्षणों_की_शब्द_उत्पत्ति है” से एक नई परिभाषा के रूप में प्रस्तुत किया है
जिसे कि भविष्य में *कविता क्या है* के लिए कोट किया जा सकता है l
संकलन में लॉकडाउन के मध्य निर्मित और घटित सकारात्मक और नकारात्मक मन: स्थितियों का जीवंत शब्द चित्रण है l
आपात काल के बाद जन जीवन को प्रभावित करने वाला काल अगर कोई आया है तो वह है कोरोना काल l
इस कोरोना काल ने जीवन की उन सभी मान्यताओं को धता बता दी जिन्हें कि हम जीवन के आदर्श और जीवन मूल्यों की संज्ञा से निरूपित करते थे l इसने हमारे उठने-बैठने, रहन-सहन, खाने-पीने, रिश्ते-नातों आदि के तौर तरीकों और परिभाषा को ही नहीं बदला अपितु हमारी रोजमर्रा में समाहित होने वाली बोलचाल की शब्दावली को भी बदल दिया l
प्रस्तुत संकलन में वो सब कुछ है जो मैंने, आपने, हम सब ने देखा है और झेला है l
यह संकलन कोरोना काल के एक हिस्से (लॉकडाउन) का एक ऐसा प्रामाणिक दस्तावेज है जिसे इतिहास वेत्ता भी इतिहास लिखते समय इसे आधार बनाना पसंद करेंगे l
इस संकलन को नवगीत के कीर्तिपुरुष #उमाशंकर_तिवारी को समर्पित किया गया है l
उल्लेखनीय है कि इस संकलन का शीर्षक भी
कीर्ति शेष उमाशंकर तिवारी जी के गीत से ही लिया गया है, जिसे कि प्रमुख रूप से स्थान प्रदान किया गया है । आप भी गौर फरमाएं –
समय है हमसे असहमत
हम असहमत हैं समय से
फिर कोई वैसा महाभारत न हो
हम मरे जाते इसी भय से
#उमाशंकर तिवारी
प्रस्तुत संकलन में डाॅ. Anita Singh , डॉ. अरुण तिवारी गोपाल Arun Tiwari , ईश्वर करुण, उमेश मौर्य, डॉ. कुँअर बेचैन, दीनानाथ सुमित्र, डॉ पीयूष मिश्र ‘पीयूष’, प्रभात पटेल ‘पथिक’, बृजनाथ श्रीवास्तव, मनीष विरल, Ranjit Patel , रूपम झा, सत्येन्द्र गोविंद, Subhash Vasishtha , सूरज दूबे प्रांजय, अनामिका सिंह ‘अना’ , अरविंद अवस्थी, अवनीश त्रिपाठी , अविनाश ब्यौहार, स्व. कैलाश झा ‘किंकर’, Garima Saxena , ज्ञान प्रकाश आकुल, पूर्णिमा वर्मन , मंजूषा मन, रंजन कुमार झा, रवि खण्डेलवाल, Rajendra Verma ,
राम चरण राग, Sheela Pandey , Shailendra Sharma , सन्नी गुप्ता ‘मदन’, सुधांशु उपाध्याय, हरिनारायण सिंह हरि, हरिवल्लभ शर्मा ‘हरि’ शर्मा , डॉ अक्षय पाण्डेय, ओम धीरज, ओम प्रकाश तिवारी , कल्पना मनोरमा , Ganesh Gambhir , गुलाब सिंह, जय कृष्ण राय तुषार, नचिकेता, पंकज परिमल, Manju Lata Srivastava , मधुकर अष्ठाना, मृदुल शर्मा, यश मालवीय, Yogendra Maurya , Yogendra Vyom , डॉ रवि शंकर पाण्डेय, रवि शंकर मिश्र, Raja Awasthi , राहुल शिवाय, शिवानंद सिंह ‘सहयोगी’, शुभम् श्रीवास्तव ओम एवं संजय पंकज के नवगीतों को स्थान प्रदान किया गया है ।
योगेन्द्र मौर्य –
कोरोना काल के सकारात्मक-नकारात्मक पक्षों की पड़ताल करता नवगीत संकलन”हम असहमत हैं समय से”
“हम असहमत हैं समय से(नवगीत@लॉकडाउन)” कोरोना महामारी की पहली लहर में लिखे नवगीतों का संकलन है।
कोरोना काल ने हमारे उठने-बैठने,खाने-पीने,रहन-सहन और रिश्ते-नाते आदि को प्रभावित किया।
नवगीत कवियों ने जिन स्थितियों को देखे-भोगे उन्हीं स्थितियों को गीत के माध्यम से कागज पर उतारे और अनेक अप्रस्तुत विषय के साथ अर्थवान बिम्ब प्रदान किये।
गीतों में कुछ नये शब्दों,जो कि आम बोल-चाल की भाषा का हिस्सा बने यथा-
लॉकडाउन,सैनिटाइजर,मास्क,सोशल डिस्टेंसिंग,क्वारन्टीन,वर्क फ्रॉम होम,होम आइसोलेशन और कोविड आदि का होना स्वाभाविक है।
यह संकलन ऐसे समय में प्रकाशित हुआ,जब कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर चरम पर है।इससे संकलन की उपयोगिता बढ़ जाती है।
इस संकलन में 56 नवगीतकारों के 119 नवगीत सम्मिलित हैं।